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  • Writer's pictureThe "SaY" Magazine

“SaY” it with a poem: A message of hope by Meenu Vyas

*खाली स्कूल..*

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*आज हैरान परेशान सा है स्कूल का हर कोना,*

*पूछ रहा है वो कहाँ गया बच्चों का हँसना रोना।*


*क्यों हर कक्षा के बाहर लटक रहे हैं ताले ?* *कहाँ गए वो बच्चे, जो थे इसमें पढ़ने वाले ?*


*कक्षाओं के अंदर वह सारे बेंच आज खाली पड़े हैं,*

*जिन पर बैठने को कई बार दोस्त आपस में लड़े हैं।*


*सुनसान सा पड़ा है वो आज खेल का मैदान,*

*जहाँ खेलते थे खिलाड़ी लगाकर अपनी जान।*


*उदास पड़ा है आज स्कूल का वह सुंदर सा लॉन,*

*जहां आधी छुट्टी में खाना खाने बच्चे बैठते थे आन।*


*स्कूल के गलियारों में अजीब सी शांति पसरी है,*

*आते जाते बच्चों की अब ना कोई अफरा तफरी है।*


*ऑफिस रूम से अब नहीं सुनाई देती वो घंटी,*

*जिसकी आवाज पर दौड़े आते थे अंकल-आंटी।*


*वह स्टाफ रूम जहां रहती थी हर वक्त चहचहाहट,*

*वीरान सा पड़ा है आज ना सुनती है कोई भी आहट।*


*चाय की चुस्कियों के साथ वो अध्यापकों का बतियाना,*

*छोटी छोटी भूख मिटाने कैंटीन में बच्चों का आना जाना।


*कभी डांटते थे हम बच्चों को चुप रहो, ना शोर करो,*

*आज चाहता है दिल कहना बच्चों शोर करो और करो।*


*लगता है वृक्षों पे पंछी भी तब तक नहीं चहचहाएंगे,*

*जब तक उनकी आवाज सुनने बच्चे स्कूल नहीं आएंगे।*


*माँगते हैं हम यह रब से दुआ जो हो जाए कबूल,*


*रहे जग सारा स्वस्थ्य और बच्चे सब जल्द आएं स्कूल।*

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